परिचय

श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पवित्र परिसर में प्रवेश करना ही एक दिव्य उपलब्धि है |  उस अनन्तकालजीवी, सर्वव्यापी के आभिर्भाव अस्थल में स्वयं को समर्पित करना एक अलौकिक एवं पवित्र आनंद की अनुभूति है | जैसे ही आप अपने जीवम की व्यस्तताओं की विस्मृत कर (भुला कर) इस अलौकिक परोसार में प्रवेश करते हैं, आप इस सुक्ष्म जगत का अंश बन जाते है और शांति और श्रद्धा का भाव आपके हृदय में स्वयं उत्पन्न हो उठता है |

गर्भ गृह (जन्म स्थान)



लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का परिचय देना सूर्य को दीपक दिखाना है | कोटि-कोटि हिन्दुओं की दृस्टि में तो वे अनादि-अजन्मा ईश्वर ही है | उन्होनें द्वापर के अंत में पूर्णावतार ग्रहण किया और जब उनका उद्देश्य पूरा हो गया, तब वे अपने दिव्य, चिन्मय एवं अविनाशी विग्रह से गोलोक पधार गए |



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